विलुप्त होने की कगार पर हैं दुधवा के तेदुआं
बाघों को बचाने के लिये हो-हल्ला मचाने वाले लोगों ने बाघ के सखा तेदुआ को भुला दिया है। इससे बाघों की सिमटती दुनिया के साथ ही तेदुंआ भी अत्याधिक दयनीय स्थिति में पहंुच गया है। इसे भी बचाने के लिये समय रहते सार्थक एवं दूरगामी परिणाम वाले प्रयास नहीं किए गए तो वह दिन भी ज्यादा दूर नहीं होगा जब तेदुंआ भी ‘चीता’ की तरह भारत से विलुप्त हो जाएगा।
बिल्ली की 36 प्रजातियों में वनराज बाघ का सखा तेदुंआ चैथी पायदान का रहस्यमयी शर्मिला एकांतप्रिय प्राणी है। बिल्ली प्रजाति के इस प्राणी की तीन प्रजातियां भारतीय जंगलों में पाई जाती है। भारत के जंगलों से इसकी चैथी प्रजाति ‘चीता’ विलुप्त हो चुकी है। भारत-नेपाल सीमावर्ती लखीमपुर-खीरी के तराई वनक्षेत्र में कभी बहुतायत में पाए जाने वाले तेदुंआ आतंक के पर्याय माने जाते थे। धीरे-धीरे बदलते समय और परिवेश के बीच वंयजीव संरक्षण के लिये दुधवा नेशनल पार्क की स्थापना 1977 में की गई। यहां के बाघों के संरक्षण व सुरक्षा के लिये 1988 में प्रोजेक्ट टाइगर शुरू किया गया। 1986 में दुधवा नेशनल पार्क की गणना सूची में 08 तेदुंआ थे। दस साल में इनकी संख्या बढ़ी तो नहीं वरन् 1997 में घटकर मात्र तीन तेदुंआ रह गए और सन् 2001 की गणना में केवल 02 तेदुंआ दुधवा में बचे थे। वर्तमान में इनकी संख्या आधा दर्जन के आस-पास बताई जा रही है। पिछले लगभग डेढ़ दशक के भीतर खीरी जिला क्षेत्र में तीन दर्जन से ऊपर तेदुंआ की खालें बरामद की जा चुकी है, जिन्हे वन विभाग तथा पार्क के अफसरान नेपाल के तेदुंआ की खालें बताकर कर्तव्य से इतिश्री करके अपनी नाकामी पर पर्दा डालते रहे हंै। इसके अतिरिक्त पिछले कुछेक सालों में आधा दर्जन से ऊपर तेदुंआ अस्वाभाविक मौत का शिकार बन चुके हंै। इसमें पिछले माह दुधवा प्रोजेक्ट टाइगर के तहत कतर्नियाघाट वंयजीव प्रभाग क्षेत्र में दो तेदुंओं को ग्रामीणों ने पीटकर मार डाला जबकि दो साल पहले नार्थ-खीरी फारेस्ट डिवीजन की धौरहरा रेंज में ग्रामीणों ने गन्ना खेत में घेरकर एक तेदुंआ को आग से जला कर मौत के घाट उतार दिया था। 27 फरवरी 2010 को कतर्नियाघाट की ही मुर्तिहा रेंज के जंगल में एक चार वर्षीय मादा तेदुंआ का क्षत-विक्षत शव मिला है। इन सबके बीच खास बात यह भी रही कि किशनपुर वंयजीव प्रभाग की मैलानी रेंज में मिले तेदुंआ के दो लावारिस बच्चों को तत्कालीन दुधवा के डीडी पी0पी0 सिंह लखनऊ प्राणी उद्यान छोड़ आए थे, वहां पर पल-बढ़ कर यह दोनों सुहेली और शारदा के नाम से पहचाने जाते हैं।
दुधवा टाइगर प्रोजेक्ट की असफलता सर्वविदित हो चुकी है। बाघों को संरक्षण देने में किए जा रहे अति उत्साही प्रयासों के दौरान वन विभाग के जिम्मेदार आलाअफसरों ने दुधवा नेशनल पार्क के अंय वंयजीवों-जंतुओं का संरक्षण और जंगल की सुरक्षा को नजरंदाज कर दिया है। परिणाम स्वरूप बिल्ली प्रजाति का ही बाघ का छोटा भाई तेदुंआ यहां अपने अस्तित्व को बचाए रखने हेतु दयनीय स्थिति में संघर्ष कर रहा है, और इस प्रजाति का सबसे बलशाली विडालवंशी लायन यानी शेर गुजरात के गिरि नेशनल पार्क तक ही सीमित रह गए हैं । लुप्तप्राय दुर्लभ प्रजाति के वंयजीवों की सूची में प्रथम स्थान पर मौजूद तेदुंआ के संरक्षण एवं सर्वद्धन के लिये अलग से परियोजना चलाए जाने की जरूरत है। समय रहते अगर कारगर व सार्थक प्रयास नहीं किए गए तो तराई क्षेत्र से ही नहीं वरन् भारत से तेदुंआ विलुप्त होकर किताबों के पन्नों पर सिमट जाएगें। (लेखक-वाइल्ड लाइफर व पत्रकार है)
1 टिप्पणी:
sampark kare.....9810896989...arvind singh
cneb news
एक टिप्पणी भेजें