वैसे अगर यह कहा जाये तो विली के लिए यह बात भी बिलकुल सटीक बैठती है कि जंगल के बाघ को बनराज कहा जाता है वह पूरी जिन्दगी अपना कुनबा बडाता है और जब उसकी मौत होती है तो उसके करीब कोई नही होता है. यही हाल कुछ दुधवा के टाईगर यानी विली अर्जन सिंह के साथ हुआ. उनकी भी जब मौत हुई तो अंतिम घड़ी में श्री विली के पास उनका कोई अपना नही था यानी कोई सगा-सम्बन्धी. उनके करीब थे केवल उनके सेवादार, जो हमेशा उनके सुख-दुःख में साथ रहते थे. दुसरे करीबी मित्र थे उनके पास पास डब्ल्यू.डब्ल्यू. ऍफ़. के मुदित गुप्ता.हालाँकि श्री विली आजीवन कुंवारे रहे और अपना पूरा जीवन बाघों को बचाने में लगा दिया. वन्यजीवों से उन्हें बहुत लगाव था. श्री विली का कहना था कि इस धरती पर अगर बाघ नही रहे तो मानव जीवन भी नही रहेगा दुनिया नस्ट हो जायेगी.
१५ अगस्त १९१७ को गोरखपुर में पैदा हुए विली अर्जन सिंह का पटियाला के राजघराने से ताल्लुक था सेना में कैप्टन की नौकरी से त्यागपत्र देने के बाद उहोंने आजादी से कुछेक साल पहले इस तराई छेत्र को अपनी कर्मभूमि बनाया. श्री विली का कहना था कि १२ साल की उम्र में एक बाघ को गोली मारी थी. उसके बाद केवल उन बाघों को ही गोली का निशाना बनाया जो नरभक्छी हो चुके थे. एक जमाने में मशहूर शिकारी रहे विली अर्जन सिंह की ख्याति बाघों के रखवाले के रूप में देश-विदेश तक फ़ैली. वन्यजीवों को सुरछा देने के लिए दुधवा नेशनल पार्क की स्थापना में श्री विली का महत्वपूर्ण योगदान रहा.
इंग्लैड में एक पार्क से तत्कालीन प्रधानमन्त्री स्व. इंदिरा गांघी को मिली सायवेरियन प्रजाति की बाघिन तारा को पालकर अंगुली पर नचाने वाले श्री विली अंतर रास्ट्रीय स्तर पर चर्चित हुए.हलाकि नरभक्छी होने पर तारा को गोली का निशाना बनाकर मौत दी गई थी. उन्होंने हैरिएट और जूलियट नाम के दो तेदुआं भी पाले जो बड़े होकर जंगल में भाग गये थे. इनके पास एक कुतिया भी रही जिसे वह अत्यधिक प्यार करते थे. कुतिया और तारा एक साथ कटोरी में दूध पीतीं थी.
वन्यजीव की रखवाली में जीवन ब्यतीत करने वाले श्री विली को १९७३ में पद्मश्री, 2006 में पद्म भूषण, 2005 में पालगेटी, २००६ में यश भारती, तथा डब्ल्यू.डब्ल्यू. ऍफ़ से गोल्ड मैडल एवं एवीएन एमसेका लाईफ टाईम एचीवमेंट अवार्ड मिला. श्री विली ने बाघों की रहस्यमय दुनिया और उनके जीवन पर आधा दर्जन किताबें भी लिखी. श्री विली अरेबियन नाईट आदि उपन्यासों के भी शौक़ीन थे. उनके पुस्तकालय विश्व के मशहूर उपन्यासकारों की दुर्लभ पुस्तकें भी मौजूद है.
लेकिन छेत्रीय जनप्रतिनिधि इस अवसर नही पहुचे. जनप्रतिनिधियों की इस उपेछा पर भी वन्यजीवप्रेमियों ने आश्चर्य ब्यक्त किया है.
दुधवा के टाईगरों के रखवाले विली अब इतिहास बने