स्रष्टि कंजर्वेशन एंड वेलफेयर सोसाइटी [पंजीकृत] वन एवं वन्यजीवों की सहायता में समर्पित Srshti Conservation and Welfare Society [Register] Dedicated to help and assistance of forest and wildlife
रविवार, 20 सितंबर 2009
25 हजार परिवार बाघों के अभ्यारण्य से विस्थापित होंगे
मध्य प्रदेश के बाघ अभ्यारण्यों से इंसानी बसाहट को हटाने के लिए सूबे की सरकार ने केंद्र सरकार से ढाई हजार करोड़ रूपयों की मांग की है। प्रदेश के पेंच, कान्हा, सतपुड़ा, बांधवगढ़ बाघ अभ्याराण्यों को इंसानी दखलंदाजी से मुक्त करने की कार्ययोजना प्रदेश सरकार ने केंद्र को सौंपी है।
राष्ट्रीय बांघ संरक्षण प्राधिकरण 'एनटीसीए' के अनुसार मध्य प्रदेश सरकार ने बाघों पर मंडराते खतरे को देखकर केंद्र से मदद की गुहार लगाई है। सूत्रों ने कहा कि इस मामले को एनटीसीए ने योजना आयोग के पास भेज दिया है। सूत्रों ने कहा कि प्रतिवेदन में कहा गया है कि सूबे में बाघों पर मंडराते खतरों को देखते हुए इन अभ्यारण्यों में बसे गांव खाली कराकर आबादी को अन्यत्र बसाया जाना तत्काल जरूरी है।
सूत्रों ने कहा कि इस प्रतिवेदन में साफ कहा गया है कि इन वन्य अभ्यारण्यों में निवास करने वाले पच्चीस हजार बीस परिवारों को चििन्हत किया गया है, जिन्हें यहां से हटाकर अन्यत्र बसाने की योजना है। सरकार द्वारा स्वेच्छा से इन अभ्यारण्यों को छोड़कर अन्यत्र जाने वाले परिवारों को दस लाख रूपए प्रति परिवार की दर से मुआवजा देने का प्रावधान किया है।
इस प्रतिवेदन में आगे कहा गया है कि नकद स्वीकार न करने वाले परिवारों को जमीन देने का विकल्प भी खुला रखा गया है। माना जा रहा है कि वन एवं पर्यावरण मंत्रालय में भारतीय वन सेवा 'आईएफएस' के मध्य प्रदेश काडर के दो वरिष्ठ अधिकारियों कान्हा नेशनल पार्क में संचालक रहे राजेश गोपाल एवं संचालय वन्य प्राणी तथा प्रधान मुख्य वन संरक्षक रहे गंगोपाध्याय के पदस्थ होने के बाद मध्य प्रदेश में वन्य प्राणियों की स्थिति में सुधार होने की उम्मीद है। प्राप्त जानकारियों के अनुसार मध्य प्रदेश में बाघों की तादाद मानव के हस्ताक्षेप, अवैध शिकार एवं सड़क दुर्घटनाओं तथा बीमारियों के चलते जहां 2007 में तीन सौ के लगभग थी, वह अब दो सौ का आंकड़ा ही पार कर पा रही है।
बाघ की बढ़ती हत्या के लिए चीन जिम्मेदार
केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण राज्यमंत्री जयराम रमेश का कहना है कि देश में बाघों के बढ़ते शिकार के लिए चीन जिम्मेदार है क्योंकि वहां दवाईंयों में इनका इस्तेमाल किया जाता है. एक अनुमान है कि 2002 के 3642 बाघों की तुलना में अब देश में 1411 बाघ ही बचे हैं. एक शताब्दी पहले देश में बाघों की आबादी 40,000 के ऊपर थी.
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
1 टिप्पणी:
जानवरों के लिए मनुष्य की उपेक्षा .. इसके अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं था क्या ?
एक टिप्पणी भेजें