बुधवार, 10 दिसंबर 2008

आतंकवादियों का कोई धर्मं नही होता

26/11ब्लैक नवंबर, केवल मुंबई पर हमला नहीं था, बल्कि यह हमला धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक संविधान और समूचे भारतीय गणतंत्र के साथ साथ इंसानियत पर भी हमला था। इस हमले में मुंबई एटीएस के बहादुर महानिदेशक हेमंत करकरे और दो अन्य अधिकारियों समेत 20 सिपाहियों को अपनी जान गंवानी पड़ी। यूं तो हर मुठभेड़ में ( जो वास्तविक हो ) में किसी न किसी सैनिक को जान गंवानी पड़ती है लेकिन करकरे की पीठ पर वार किया गया और हत्यारे करकरे का सामना करने की हिम्मत नहीं जुटा सके। जब जब मुंबई हादसे और करकरे का जिक्र आ रहा है तो बार बार ब्लैक नवंबर से महज दो या तीन दिन पहले करकरे का वह वक्तव्य याद आ जाता है, जिसमें उन्होंने कहा था कि मालेगांव बमकांड में पकड़े गए आतंकवादियों के पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई से संबंध हैं। करकरे के इस बयान के बाद ही भगवा गिरोह के कई बड़े गददीदारों के बयान आए थे कि 'एटीएस की सक्रियता संदिग्ध है'। देखने में आया कि करकरे के इस बयान के तुरंत बाद ही मुंबई पर हमला हो गया। क्या करकरे की शहादत एटीएस को चुनौती है कि अगर करकरे की बताई लाइन पर चले तो अंजाम समझ लो? करकरे की बात अब सही लग रही है , क्योंकि हमलावर आतंकवादी मोदिस्तान गुजरात के कच्छ के रास्ते ही बेरोक टोक और बेखौफ मुंबई तक पहुंचे थे। इससे पहले भी कई बार खुलासे हो चुके हैं कि देश में आरडीएक्स और विस्फोटकों की खेप गुजरात के रास्ते ही देश भर में पहुंची। भगवा गिरोह गुजरात को अपना रोल मॉडल मानता है और परम-पूज्य हिंदू हृदय समा्रट रणबांकुरे मोदी जी महाराज घोषणाएं कर चुके हैं कि गुजरात में आतंकचाद को कुचल देंगे।ष्लेकिन तमाशा यह है कि जो लोग 26 नवंबर की शाम तक करकरे को खलनायक साबित करने पर आमादा थे अचानक 27 नवंबर को उनका हृदय परिवर्तन हो गया और उन्हें अपने कर्मों पर इतना अधिक अपराधबोध होने लगा कि वो करकरे की विधवा को एक करोड़ रुपए की मदद देने पहुंच गए। लेकिन जितनी ईमानदारी और बहादुरी का परिचय करकरे ने दिया उससे दो हाथ आगे बढ़कर उनकी विधवा पत्नीष्ने एक करोड़ रुपए को लात मारकर करकरे की ईमानदारी और बहादुरी की मिसाल को कायम रखकर ऐसे लोगों के मुंह पर करारा तमाचा मारकर संदेश दे दिया कि जीते जी जिस बहादुर को खरीद नहीं पाए उसकी शहादत को भी एक करोड़ रुपए में खरीद नहीं सकते हो गुजरात में मंदिर गिराने वाले भगवा तालिबानों! ब्लैक नवंबर से रतन टाटा को 4000 करोड़ रुपए का नुकसान हो सकता है, देश की आर्थिक राजधानी मुंबई को कई हजार करोड़ रुपए और सौ से अधिक जानों का नुकसान हो सकता है। करकरे समेत 20 जाबांज सिपाहियों की शहादत से सैन्य बलों को नुकसान हो सकता है, लेकिन इसका फायदा सिर्फ और केवल सिर्फ भगवा गिरोह को हुआ है और उसने यह फायदा उठाने का भरपूर प्रयास भी किया है। करकरे की शहादत के बाद अब लंबे समय तक मालेगांव की जांच ठंडे बस्ते में चली जाएगी और गिरफ्तार भगवा आतंकवादी ( कृपया हिंदू आतंकवादी न पढ़ें चूंकि हिंदू आतंकवादी हो ही नहीं सकता! ) न्यायिक प्रक्रिया में सेंध लगाकर बाहर भी आ जाएंगे और जो राज ,करकरे खोलने वाले थे, वह हमेशा के लिए दफन भी हो जाएंगे। हमारे पीएम इन वेटिंग का दल लाशों की राजनीति करने में कितना माहिर है, इसका नमूना 27 नवंबर को ही मिल गया। 27 नवंबर को जब मुंबई बंधक थी, सैंकड़ों जाने जा चुकी थीं और एनकाउंटर चल रहा था, ठीक उसी समय टीवी चैनलों पर एक राजस्थानी हसीन चेहरा ( जो रैंप पर अपने जलवे बिखरने के कारण भी सुर्खियों में रहा है ) आतंकवाद पर विफल रहने के लिए कांग्रेस और केंद्र सरकार को कोस रहा था और ' भाजपा को वोट / आतंक को चोट ' का नारा दे रहा था। अगर आतंक पर चोट के लिए भाजपा को वोट देना जरुरी है तो 26 नवंबर की रात से लेकर 29 नवंबर तक आतंक को कुचल देने वाले मोदी जी महाराज, पीएम इन वेटिंग, दुनिया के नशे में से पापी पाकिस्तान का नामो निशान मिटा देने की हुकार भरने वाले हिंदू हृदय सम्राट बाला साहेब ठाकरे किस दड़बे में छिपे थे? ये वीर योध्दा कमांडो के साथ क्यों लड़ाई में शामिल नहीं थे? भगवा गिरोह कहता है कि केंद्र सरकार नपुंसक है, हम भी मान लेते हैं कि केंद्र सरकार नपुंसक है। लेकिन 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद शहीद करने वाले और मुंबई, सूरत, अहमदाबाद की सड़कों पर कांच की बोतलों पर स्त्रियों को नग्न नचाने और सामूहिक बलात्कार करने वाले वो बहादुर भगवा शूरवीर किस खोह में छिपे थे? मुंबई के पुलिस महानिदेशक को, वर्दी उतारकर आने पर यह बताने कि मुबई किसके बाप की है ,चुनौती देने वाले मराठा वीर राज ठाकरे कहां दुबक गए थे ? पाक आतंकी तो वर्दी उतार कर आए थे। दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रो0 गिलानी पर थूकने वाले वीर मुंबई में थूकने क्यों नहीं गए? याद होगा कि बाटला हाउस एनकाउंटर के बाद भाजपा ने कांग्रेस से पूछा था कि वह इंसपैक्टर शर्मा को श्शहीद मानती है या नहीं ? ठीक यही सवाल आज हम अडवाणी जी और परम प्रतापी मोदी जी से पूछना चाहते हैं कि वे करकरे को शहीद मानते हैं कि नहीं ? अगर नहीं तो मोदी करकरे की विधवा को एक करोड़ रुपए देने क्यों गए थे ? यदि इसलिए गए थे कि करकरे शहीद हैं तो स्वीकार करो कि करकरे ने जो कहा था कि मालेगांव के आतंकवादियों के आईएसआई से संबंध हैं, सही है और मुंबई हमला आईएसआई ने इसी सत्य पर पर्दा पर डालने के लिए कराया है। मुंबई हादसा एनडीए सरकार द्वारा देश के साथ किए गए उस विश्वासघात का परिणाम है, जब भाजपा सरकार ने आतंकवाद के मुख्य सा्रेत खूुखार आतंकवादियों को सरकारी मेहमान बनाकर कंधार तक पहुचाया था और आज तक उस विश्वासघात के लिए भाजपा ने देश से माफी नहीं मांगी है, जिसके चलते आतंकी घटनाओं से बारबार भारत का सीना चाक होता है और करकरे जैसे बहादुर जांबाज सिपाही शहीद होते हैं। आखिर वह कौन सा कारण है कि मोहनचंद शर्मा की अंत्येटि में पहुंचने वाले लोग करकरे को आखरी सलाम करने नहीं पहुंचते हैं और 20 सैनिकों की शहादत के बाद भी उन्हें ये देश नपुंसक नजर आता है ??????? करकरे भले ही आज नहीं है, लेकिन करकरे की शहादत आतंकवाद विरोधी लड़ाई को हमेशा ज्योतिपुंज बनकर रास्ता दिखाती रहेगी और उनका यह मंत्र कि 'आतंकवादी का कोई धर्म नहीं होता है' आतंकविरोधी मिशन को पूरा करने का हौसला देता रहेगा।