गुरुवार, 26 फ़रवरी 2009

फैजाबाद में मारा गया बाघ है या बाघिन ??????


इसे यूपी का दुर्भाग्य कहा जाए या फिर वन विभाग के अफसरों की नाकाबिलियत का नमूना माना जाए कि वह तीन माह में यह पता नहीं पाए कि पीलीभीत से फ़ैज़ाबाद तक घूमने वाला बाघ नर है या मादा ? इसका खुलाशा हुआ है 25.02.2009 को बरेली के आई.बी.आर.आई. में पोस्टमार्टम के दौरान कि फ़ैज़ाबाद में 24.02.2009 को शिकारी नवाब की गोली से मारा गया आदमखोर बाघ नहीं वरन बाघिन थी.उल्लेखनीय है माह नवंबर 2008 के प्रथम सप्ताह पीलीभीत के जंगल से निकाला बाघ साउथ खीरी के जंगल के साथ शाहजहांपुर से होता हुआ सीतापुर्, बाराबंकी फिर लखनऊ और उसके बाद फ़ैज़ाबाद तक पहुँच गया. इस दौरान तमाम स्थानों से उसके पंजों के निशान मिलें उनके फुटप्रिंट तैयार करके उनका मिलान भी किया गया. उधर मानव हत्तायाऑ का दोषी मानकर बाघ को आदमखोर घोषित किया गया. इससे पूर्व ओर बाद में चलाए गए मिशन टाइगर में यूपी बन महकमे के डी.एफ.ओ. पीलीभीत, साउथ-खीरी, सीतापुर्, लखनऊ, दुधवा, कतर्नियाघाट, फ़ैज़ाबाद डी. एफ. ओ. आदि तमाम छोटे बड़े अफसरों समेत सैकडॉ कर्मचारियों के साथ ही अवध प्रांत के मुख्य वन संरछ्क ने पंजो के निशानों को देखा ही साथ में यूपी में विभाग के सबसे बड़े अफसर प्रमुख वन संरछक [वन्यजीव] ने भी शायद उन पंजो को देखा होगा. उसके बाद भी यह सभी आला अफसर यह पता नहीं लगा सके कि मौत की सजा से बचकर भाग रहा बाघ नर है मादा. ? यह सिथति आपने आप में ही दुर्भाग्यपूर्ण कहीं जाएगी. ..फिलहाल बन विभाग के नाकाबिल ओर नकारा हो चुके बनाधिकारियो की कार्यशैली के कारण एक बाघ असमय कलकवलित हो गया है. वन्यजीव प्रेमियों का मानना है कि वन विभाग द्वारा अगर सार्थक प्रयास किए जाते तो शायद इस बाघ को लखनऊ पहुचने से पहले ही रोक कर टैंकुलाइजर कर पकड़ा जा सकता था या हांका लगाकर वापस भी किया जा सकता था. लेकिन ऐसा क्यों नहीं किया गया ? यह आपने आप में ही बिचारणीय प्रश्न है. ओर इसकी गहन जाँच की भी आवश्यकता है.गौरतलब यह भी है कि आदमखोर बाघ को पकड़ने के किए चलाए गए टाईगर मिशन पर सरकार का करोडो रुपया खर्च को चुका है. वह भी अफसरों की नाकाबिकियत के कारण. इसकी उन अफसरों के रिकवरी होनी चाहिए साथ ही इस पूरे मामले की जाँच भी सी.बी.आई से होनी भी आवश्यक है. ताकि दोषी अफसरो को सजा मिल सके ताकि अफसर भी इससे सीख ले सके. ओर आगे कोई बाघ साज़िश का शिकार होकर मौत की सजा न पा सके. बन विभाग के ही सूत्रो का कहना है कि पीलीभीत के जंगल से बाघ निकाला था इसकी रिपोर्टिंग भी हुई थी फिर यह बाघिन कैसे हो गई ? इसकी भी गहन जाँच की आवश्यकता है. अगर छानबीन हो जाए तो एक बहुत बड़ी साज़िश का खुलाशा हो सकता है इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता है.{लेखक स्वतंत्र पत्रकार एव वाइल्ड लाईफर है}




शनिवार, 21 फ़रवरी 2009

अफसारो की नाकामी से बाघ बन रहें हैं आदमखोर


लखीमपुर जिले के साउथ फारेस्ट डिविजन की भीरा रेंज के ग्राम कापटांडा के आसपास चार मानव हत्या करने वाला बाघ यूपी के वन बिभाग के अफसरों की नाकामी और असफलता की सलीब पर चड्कर 20 फरवरी 2009 को मौत की सजा पा चुका है. अब बन बिभाग के ही लोग जो बाघों के रछक थे वही उसे गोली मार कर मौत की नींद सुलाने के लिए बाघ को खोज रहें है.जबकि दो माह पहले किशनपुर वन पशु बिहार के जंगल से बाहर आए इस बाघ को अगर प्रयास किए जाते तो इसे वापस जंगल में भेजा सकता था लेकिन बनाधिकारियो कोई भी ऐसा सार्थक प्रयास नहीं किया. परिणाम बाघ जंगल में भोजन की हुई कमी के कारण खेत में झुकाकर कम कराने वालों को चोपाया समझकर मानव पर हमला शुरु किया और फिर खूंखार बन कर चार मानव ही हत्या करके बाघ आदमखोर बन गया. इसके बाद भी उसे पकड़ने के अथवा बेहोश करने के सार्थक प्रयास नहीं किए गए और बाघ को मानाव के लिए खतरनाक घोषित करके मुख्य वन संरछक वन्यजीव बीके पटनायक ने बाघ को गोली मरने का आदेश जारी कर दिया है. एक तरफ़ पूरा विश्व बाघ संरछण की बात कर रहा है और यूपी के अफसर अपनी नाकामी पर परदा डालने के लिए मानव हत्या का सहारा लेकर यूपी के जंगलों से बाघोन का सफाया कराने से परहेज़ नहीं कर रहे हैं. इससे पहले भी बिभागीय अफसरों की सुस्ती से पीलीभीत के जंगल से निकाला बाघ लखनऊ तक पहुँचा अब वह फ़ैज़ाबाद के आसपास अपनी जान बचता घूम रहा है. इस बाघ को भी बीच में रोक कर जंगल में वापस किया जा सकता था लेकिन यह न करके अपनी नाकामी की चादर की आड़ लेकर इस बाघ को भी मौत की सजा दिलवाने में सफल रहे थे. आख़िर यह कब तक चलेगा. यह स्वयं में बिचारणीय प्रश्न बन गया है. बाघों को आदमखोर घोषित करने से पहले क्या अध्ययन किया जाता है. शायद नही, क्योकि कांपटांडा वाले बाघ में कागजो पर बने गई कमेटी ने बाघ की मौत के फरमान की सिफारिश कर दी थी. यह क्रूर मजाक बाघ के जीवन के साथ क्यों किया गया इसमें साज़िश की स्पस्ट बू आ रही है.भ्रस्टाचार और अफसरों की नालायकी के कारण यूपी में प्रोजेक्ट टाईगर असफलता की डलान पर चल रहा है. तीस साल में अरबों रुपया खर्चने के बाद भी बाघों की संख्या बडने के बजाय घाट ही रही है. आख़िर क्यों ? कहीं न कहीं सिस्टम में झोल है. और नाकाम बनाधिकारी इस पर परदा डाल रहें हैं. राजस्थान का सारिस्का नेशनल पार्क इसका जीता जागता उदाहरण है. वहाँ भी बनाधिकारियो की ही नाकामियों के चलते बाघ गायब हो गए थे. अब यही साज़िश दुधवा नेशनल पार्क के बाघों के साथ रची जा रही है. बाघ जंगल के बाहर क्यों आते हैं इस पर शोध क्यों नहीं किए जा रहें. बिड्म्बना यह है कि दुधवा प्रशासन किसी को इसकी इजाजत भी नहीं देते है. ऐसा क्यो किया जाता है. इसकी जाँच होनी चाहिए. फिलहाल बाघ को मार देना क्या समस्या का स्थाई समाधान है. जवाब होगा शायद नहीं ? और आगे भी कोई बाघ आदमखोर नहीं बनेगा. इसकी भी कोई गारन्टी नहीं है. ऐसी दशा में अब यह आवश्यक हो गया है कि प्रोजेक्ट टाइगर की समीछा की जाए. और मानव तथा वन्यजीवों के बीच बड रहे संघर्श को नई परिभाषा दी जाए ताकि दोनों अपनी सीमाओं में सुरछित जीवन ब्यतीत कर सकें. अन्यथा की सिथति में परिणाम खतरनाक ही निकलेगे. जिसका खामियाजा दोनो को भुगतना पडेगा.,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,डीपी मिश्रा

मोहताज़ नही प्यार

PYAR kisi ek din ka mohtaaz nhi hota. payar kisi kagaz par likhe shabdo mai nhi hota pyar kisi fool ki khushboo mai bhi nhi hota pyar gift paane ya dene ka nam nhi ..................pyar do dilo ka ,aatmao ka milan hota hai ,kagaz par likhe shabd kisi khas din mai adhik mahatav nhi rakhte ,kisi khas din mai fool ki khushboo nhi barh jati ...............pyar ko mahssus karna hota hai , pyar ka ahsas jaruri hai ....................... aaj pyar sabji bhaji ki tarah sab log bechege n kharidege ..chand fullo,greetings ya gifts ke sath pyar nhi barega .pyar ko barane ke liy aapki bhavnai ki kafi hai, jise tumse sachcha pyar hai wo aaj is valentine day ka mohtaj nhi .......................... aap chahe jitne logo ko happy valentine day kahe .but sorry to say mai kisi spl din mai vishwas nhi karti .mera pyar anmol hai ,unique hai ..mai aaj unko isliy pyar wish nhi karungi k aaj spl din hai balki mai to har din har waqt pyar karti hu unse, mera pyar samay ya tarikh ka nhi sochta .pyar ka ahsas n bhavnao ki tivrta bas pyar prakat karne ka andaaz badal deti hai jo
muze hai pasand mai wo karti hu ........ aapko jo pasand hai wo aap kare.................

शनिवार, 14 फ़रवरी 2009

कुछ लोग जान से प्यारे होते .....

हर सागर के दो किनारे होते है,
कुछ लोग जान से भी प्यारे होते है,

ये ज़रूरी नहीं हर कोई पास हो,

क्योंकी जिंदगी में यादों के भी सहारे होते है !

दिलको हमसे चुराया आपने ,

दूर होकर भी अपना बनाया आपने,

कभी भूल नहीं पायेंगे हम आपको,

क्योंकि याद रखना भी तो सिखाया आपने।

याद करते है तुम्हे तनहाई में,

दिल डूबा है गमो की गहराई में,

हमें मत धुन्ड़ना दुनिया की भीड़ में,

हम मिलेंगे में तुम्हे तुम्हारी परछाई में।

मौत के बाद याद आ रहा है कोई,

मिट्ठी मेरी कबर से उठा रहा है कोई,

या खुदा दो पल की मोहल्लत और दे दे,

उदास मेरी कबर से जा रहा है कोई।

दर्द को दर्द से न देखो,

दर्द को भी दर्द होता है,

दर्द को ज़रूरत है दोस्त की,

आखिर दोस्त ही दर्द में हमदर्द होता है!

सांसो का पिंजरा किसी दिन टूट

जायेगाफिर मुसाफिर किसी राह में छूट जायेगाअभी साथ है

तो बात कर लिया करोक्या पता कब साथ छूट जायेगा

गुरुवार, 12 फ़रवरी 2009

दुधवा नॅशनल पार्क लखीमपुर-खीरी


775 Sqr KM forest area between Mohana and Suhaili river was declared as reserved forest in 1861. In 1977 Government declared 614 sqr KM area of district Kheri reserved as Dudwa National Park. Dudwa National Park is known as the Ist National Park of the state after formation of Uttrakhand. Another reserve area "Kishunpur Pashu Vihar" sanctuary located about 30 KM from Dudwa. Spread over about 204 sqr.km. , it lies on the banks of river Sharda and is surrounded by Sal forest of adjoining reserve forests.
In 1987 Dudwa National Park and Kishunpur Pashu Vihar was merged to form Dudwa Tiger Reserve (DTR). The Dudwa Tiger Reserve has total area of 818 sqr KM. It is home to a large number of rare and endangered species which includes Tiger, Leopard cat, Slath beer, rinosaurs (One horn), Hispid hare, Elephants, Black deer& Swamp deer etc,,,,,,,,