गुरुवार, 22 सितंबर 2011

दुधवा के गैंडो की नस्ल सुधारने को आसाम से आएगा नर गैंडा



दुधवा के गैंडो की नस्ल सुधारने को आसाम से आएगा नर गैंडा
यूपी के एकमात्र दुधवा नेशनल पार्क में चल रही विश्व की अद्वितीय गैंडा पुनर्वास परियोजना में एक ही पितामह नर गैंडा बांके की संतानों का परिवार होने से गैंडा परिवार के उपर अनुवांषिक प्रदूषण यानी अन्त:प्रजनन के खतरे की तलवार भी लटक रही है। इससे निपटने के लिए प्रदेश की सरकार ने पचास लाख रुपए की कार्ययोजना तैयार की है। इसमें नस्ल सुधारने यानी अनुवांषिक प्रदूषण से गैंडा परिवार को बचाने के लिए आसाम से एक नर गैंडा लाने के साथ ही उनके प्रवास का क्षेत्रफल भी बढ़ाया जाएगा।
दुधवा नेशनल पार्क की दक्षिण सोनारीपुर रेंज के 27 वर्गकिमी के जंगल को उर्जाबाड़ से घेरकर एक अप्रैल 1984 में गैंडा पुनर्वास परियोजना शुरू की गर्इ थी। तमाम उतार-चढ़ाव एवं साधनों व संसाधनों की कमी के बाद भी यह परियोजना काफी हद तक सफल रही है। करंटयुक्त फैंसिंग के अंदर एवं खुले जंगल-खेतों में स्वच्छंद विचरण करने वाले तीस सदस्यीय गैंडा परिवार का जीवन हमेशा खतरों से घिरा रहता है।पूर्वजों की धरती पर से एक सदी पूर्व विलुप्त हो चुके एक सींग वाले भारतीय गैंडा को 37 साल पहले तरार्इ क्षेत्र की जन्मभूमि पर उनको बसाया गया था। किसी वन्यजीव को पुनर्वासित करने का यह गौरवशाली इतिहास विश्व में केवल दुधवा नेशनल पार्क के नाम दर्ज है। भारत सरकार ने आसाम के पावितारा वन्यजीव विहार से दो नर व तीन मादा गैंडा लाकर दुधवा में गैंडा पुनर्वास परियोजना शुरू करार्इ थी। इसमें से दो मादा गैडों की मौत 'शिफटिंग स्टेस' के कारण हो गर्इ थी। परियोजना को आगे बढ़ाने के लिए सन 1985 में सोलह हाथियों के बदले नेपाल सरकार से बातचीत करने के बाद चितवन नेशनल पार्क से चार मादा गैंडों को लाया गया। विश्व की यह एकमात्र ऐसी परियोजना है जिसमें 106 साल बाद गैडों को उनके पूर्वजों की धरती पर पुनर्वासित कराया गया है। गंगा के तरार्इ क्षेत्र में सन 1900 में गैंडा का आखिरी शिकार इतिहास में दर्ज है, इसके बाद गंगा के मैदानों से एक सींग वाला भारतीय गैंडा गायब हो गया था। दुधवा में अपने पूर्वजों की धरती पर पुनर्वासित बांके नामक पितामह गैंडा से हुर्इ वंशबृद्धि से यहां तीस सदस्यीय गैंडा परिवार स्वच्छंद विचरण कर रहा है। एक ही पिता से हुर्इ संतानें चार पीढ़ी तक पहुंच गर्इ हैं। जिनके उपर विशेषज्ञों के अनुसार अनुवांषिक प्रदूषण यानी अन्त:प्रजनन (इनब्रीडिंग) का खतरा मंडरा रहा है। अन्त:प्रजनन के खतरे को लेकर गंभीर हुर्इ प्रदेश की सरकार ने पचास लाख रुपए की कार्ययोजना तैयार की है। इसमें आसाम के कांजीरंगा पार्क से एक नर गैंडा को लाने के साथ ही सोनारीपुर जंगल में पुरानी फैंस के पास छ:ह वर्गकिमी के वनक्षेत्र को नयी फैंस से घेरकर गैंडों के लिए नया घर तैयार कि जाएगा। इस योजना पर माह नवम्बर से कार्य शुरू कर दिया जाएगा। यह योजना कितना परवान चढ़ती है यह तो आने वाला समय ही बताएगा।
बताते चलें कि इससे पूर्व गैंडा पुनर्वास परियोजना के योजनाकारों ने तय किया था कि यहां की समषिट में तीस गैंडा को बाहर से लाकर बसाया जाएगा। उसके बाद फैंस हटाकर उनको खुले जंगल में छोड़ दिया जाएगा। उनका यह सपना तो पूरा नहीं हुआ वरन गैंडों की बढ़ती संख्या को देखकर समषिट के बृहद फैलाव, आवागमन की सुविधा, अंत:प्रजनन रोकने एवं संक्रामक संहारक तत्वों के विरुद्ध प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने के उददेश्य से दक्षिण सोनारीपुर में इस समषिट के निकट जंगल में नर्इ फैंस बनाने का प्रस्ताव शासन को भेजा गया जिसपर स्वीकृति मिलने के बाद इस योजना पर छ:ह साल पहले शुरू किया गया कार्य ठप होकर बजट आने का इंतजार कर रहा है। जीर्णशीर्ण हो चुकी 27 साल पुरानी उर्जाबाड अनुपयोगी हो गर्इ है, लकड़ीचोर व वंयजीवों के सकि्रय शिकारी फैंस के तारों को काट देते हैं इससे भी गैंडो को बाहर निकलने में आसानी रहती है।
दुधवा पार्क प्रशासन द्वारा गैडों की मानीयटरिंग व उनकी सुरक्षा के लिए अलग से हाथी एवं कर्मचारियों का भारी अमला लगाया गया है। लेकिन घनघोर जंगल के भीतर बने रेंज कार्यालय और वन चौकियों पर मूलभूत सुविधाएं उपलव्ध न होने से कर्मचारी अपनी इस तैनाती को कालापानी वाली सजा मानते हैंै। विषम परिसिथयों में वे डयूटी को पूरी क्षमता के बजाय बेगार के रूप में करते हैं। जिससे गैंडों के जीवन पर भारतीय ही नहीं वरन नेपाली शिकारियों की कुदृषिट का हर वक्त खतरा मंडराता रहता है। गैंडा परिवार की रखवाली व सुरक्षा में तैनात कर्मचारियोंं को गैंडों की निगरानी करना तो सिखाया जाता है पर बाहर भागे गैंडा को पकड़कर वापस लाने का प्रशिक्षण नहीं दिया जाता है। इन अव्यवस्थाओं के कारण विगत एक दशक से तीन नर एवं दो मादा गैंडा उर्जाबाड़ के बाहर दुधवा नेशनल पार्क क्षेत्र की गेरुर्इ नदी के किनारे तथा गुलरा क्षेत्र के खुले जंगल समेत निकटस्थ खेतों में विचरण करके फसलों को भारी नुकसान पहुंचा रहें हैं। अब्यवस्थाओं एवं कुप्रवंधन के कारण क्षेत्र में गैंडा और मानव के मध्य एक नया संघर्ष जरुर शुरू हो गया है। इसके बाद भी दुधवा नेशनल पार्क प्रशासन द्वारा संरक्षित क्षेत्र के बाहर घूम रहे गैंडों की सुरक्षा एवं उनको फैंस के भीतर लाने के कतर्इ कोर्इ प्रयास नहीं किए जा रहें हैं। जिससे इन गैडों के जीवन पर हरवक्त खतरा मंडराता रहता है। इनके साथ कभी भी कोर्इ अनहोनी हो सकती है, इस बात से कतर्इ इंकार नहीं किया जा सकता है।        

मुआवजा सूची में गैंडा हुआ शामिल
पलिया-खीरी। दुधवा के जंगल के चारों तरफ किनारे पर तमाम गांव आबाद हैं और वनक्षेत्र से सटे खेतों में फैंस तोड़कर बाहर विचरण करने वाले गैंडा लगातार फसलों को भारी क्षति पहुंचा रहे हैं। बीते दशक में मलिनियां गांव के पास गैंडा एक किसान को मार चुका है। तथा अलग-अलग गैंडों द्वारा किए गए हमलों में पौन दर्जन लोग घायल हो चुके हैं। यूपी की सरकार ने वनपशुओं द्वारा की जाने वाली फसलक्षति व जनहानि की मुआवजा सूची में 26 साल बाद गैंडा को उसमें शामिल कर दिया है। परंतु गैंडा द्वारा पहुंचार्इ जाने वाली फसल क्षति का मुआवजा अभी तक किसी किसान को नहीं दिया गया है। जनहानि एवं फसलों का नुकसान होने के बाद भी उसकी भरपार्इ न मिलने से आक्रोषित ग्रामीण खुले जंगल और खेतों के आसपास घूमने वाले गैंडों को कभी भी क्षति पहुंचा सकते हैं।

दुधवा में नहीं है पशुचिकित्सक
पलिया-खीरी। गैंडा परिक्षेत्र में बाघ के हमलों और गंभीर बीमारियों की चपेट में आने से अब तक गैंडा के आधा दर्जन बच्चे मौत की भेंट चढ़ चुके हैं। आए दिन नर गैंडो के बीच होने वाले प्रणय द्वन्द-युद्ध में गैंडों के घायल होने की घटनाएं होती रहती हैं। नर गैडोंं की 'मीयटिंग फाइट में घायल हुर्इ एक मादा गैंडा की उपचार के अभाव में असमय मौत हो चुकी है। जबकि दुधवा प्रोजेक्ट टाइगर क्षेत्र में होने वाली मार्ग दुर्घनाओं में अक्सर वन्यजीव घायल होते रहते हैं, इसके बाद भी शासन ने अभी तक न दुधवा नेशनल पार्क में विशेषज्ञ पशु चिकित्सक का पद स्वीकृत किया है और न ही आज तक किसी पशु चिकित्सक की नियुकित की गइ है।

रविवार, 11 सितंबर 2011

लखीमपुर जिला के पलिया थाना पुलिस तथा वन विभाग की टीम ने दो मुहा सांप पकड़ कर तीन तस्करों को गिरफ्तार किया

लखीमपुर जिला के पलिया थाना पुलिस तथा वन विभाग की टीम  ने दो मुहा सांप पकड़ कर
तीन तस्करों को गिरफ्तार किया तवेरा गाडी भी बरामद दो तस्कर भागने में रहे सफल  
 

तीन तस्करों को गिरफ्तार किया

तवेरा गाडी भी बरामद

दो मुंहा सांप बेचकर रातोंरात करोड़पति बनने के लालच में फंसे तीन तस्करों को करोड़ रूपया तो नहीं मिला वरन् यह पुलिस के हत्थे चढ़कर जेल पहुंच गए। ऐसा ही एक वाकया यहां हुआ है जब पांच व्यक्ति दो मुंहा सांप को लेकर बेचने जा रहे थे तब स्थानीय थाना पुलिस ने गाड़ी सहित तीन सांप तस्करों को पकड़ लिया जबकि दो तस्कर भागने में सफल रहे। पुलिस ने वाइल्ड लाइफ एक्ट के तहत अभियुक्तों को जेल भेज दिया है। 
स्थानीय थाना के एसओ राकेश कुमार ने मुखबिर की सूचना पर नार्थ खीरी फारेस्ट डिवीजन की पलिया रेंज के फारेस्टर विजेन्द्र सिंह, वनरक्षक राम नारायण आदि के साथ दुधवा तिराहा पर सीओ आफिस के आसपास नाकाबंदी करके वाहन चेकिंग शुरू कर दी। इस दौरान यूपी 14 एवी-0014 नम्बर की तवेरा गाड़ी तिराहे पर पुलिस को देख दुधवा रोड पर मुड़ गई। इस पर संदेह होने पर पुलिस ने गाड़ी का पीछा कर हवाई पट्टी वाली रोड पर पकड़ लिया। गाड़ी की तलाशी के दौरान सीट के नीचे छिपाकर रखी गई बोरी को खोलकर देखा तो उसमें विलुप्तप्राय वयंजीव जंतुओं की श्रेणी में शामिल दो मुंहा सांप बरामद हुआ। इस दौरान हुई धरपकड़ में दो सांप तस्कर तो भागने में सफल रहे जबकि पुलिस ने बरेली के कस्बा बहेड़ी के मोहल्ला मूसापुर के अयूब अली, थाना निघासन के ग्राम पठाननपुरवा के कुर्बान पुत्र निजामुद्दीन तथा पीलीभीत के मोहल्ला छोटा खुदागंज निवासी राधेश्याम पुत्र लेखराज प्रजापति को गिरफ्तार कर उनके पास से पांच हजार रूपए इंडियन तथा 4800 रूपए नेपाली करेंसी समेत दो मोबाइल बरामद हुए हैं। पुलिस ने टोयटा गाड़ी को सीजकर अभियुक्तों को वाइल्ड लाइफ एक्ट के तहत जेल भेज दिया है। 
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