बुधवार, 16 सितंबर 2009

तेज़ी से लुप्त होते प्राणी

कौरीन पौजरपर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में आशंका जताई गई है कि अगले तीस साल में दुनिया के एक चौथाई स्तनपायी जीव विलुप्त हो सकते हैं.
ख़तरे बढ़ते ही जा रहे हैंजंगलों के नष्ट होने और दुनिया के एक हिस्से से जानवरों की प्रजातियों को दूसरे इलाकों में ले जाकर छोड़े जाने से जैव संतुलन के बिगड़ने के लिए सबसे ज़्यादा जिम्मेदार माना जा रहा है.संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की रिपोर्ट में जानवरों और वनस्पतियों की ग्यारह हज़ार से ज़्यादा ऐसी प्रजातियों की सूची दी गई है जिनके लुप्त होने का ख़तरा है. इनमें एक हज़ार स्तनपायी जीव शामिल हैं, यानी दुनिया की कुल स्तनपायी प्रजातियों का एक चौथाई.पक्षियों की भी हर आठ में एक प्रजाति पर और करीब पांच हज़ार पौधों पर यही ख़तरा मंडरा रहा है.मानवीय अतिक्रमणजिन प्रजातियों पर यह ख़तरा है उनमें काले गैंडे और साइबेरियाई बाघ जैसी जानीमानी प्रजातियों के अलावा फ़िलीपीनी गरुड़ और एशियाई आमूर तेंदुए जैसी कम मशहूर प्रजातियों के जानवर भी शामिल हैं.संयुक्त राष्ट्र की इस रिपोर्ट में पिछले तीस साल की अवधि में पर्यावरण को हुए नुकसान की समीक्षा की गई है.इस आकलन के आधार पर संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि जैव प्रजातियों के विलुप्त होने के लिए जो भी कारण जिम्मेदार रहे वे सारे ही अब भी पूरी शिद्दत से कार्यरत हैं.जानवरों के रहने की जगहों, यानी जंगलों और दलदल जैसी जगहों पर इंसानी बसावट और बढ़ते औद्योगीकरण ने ख़तरे में पड़ी प्रजातियों पर बेहद बुरा असर डाला है.रिपोर्ट के अनुसार इनमें से कई कारण तो दूर किए जा सकते हैं अगर सरकारें 1992 के रियो पृथ्वी सम्मेलन में पारित सिफ़ारिशों और संधियों को ही लागू करें.इनमें बदलते मौसम पर क्योटो समझौता और जैव विविधता की संधि शामिल हैं.

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