शनिवार, 5 सितंबर 2009

गिद्ध संरक्षण के लिए केंद्र ने शुरू किया विशेष कार्यक्रम

विश्व के कई भागों में गिद्धों के अस्तित्व के खतरे के मद्देनजर सरकार ने प्रकृति के इन सफाई-कर्मियों के भारत में संरक्षण के लिए विशेष कार्यक्रम शुरू किया है।भारत में गिद्धों की नौ प्रजातियां पाई जाती हैं। पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने विश्व गिद्ध संरक्षण दिवस की पूर्व संध्या पर आज कहा कि भारत में गिद्धों की नौ प्रजातियां पायी जाती हैं और उनके सरंक्षण के लिए हमने इस वर्ष एक संरक्षण कार्यक्रम शुरू किया है। रमेश ने कहा कि पशु चिकित्सा में उपयोग में लाये जाने वाली दवा डाइक्लोफेनाक को प्रतिबंधित कर दिया गया है क्योंकि जिन जानवरों के इलाज में इस दवा का उपयोग किया जाता है उनके मृत अवशेषों को खाने से गिद्धों में गुर्दे खराब होने की समस्या देखी जा रही है।वर्ष 1992 से लेकर गिद्धों की विभिन्न प्रजातियों विशेषकर लंबी चोंच और पतले चोंच वाले गिद्धों की संख्या में 97 फीसदी की कमी देखी गयी है । इसलिए सरकार ने पिंजौर, हरियाणा, बक्सा, असम और राजाभाट खावा ‘पश्चिम बंगाल’में गिद्ध प्रजनन केंद्रों की स्थापना की है।भोपाल, भुवनेश्वर, जूनागढ़ और हैदराबाद के चिड़ियाघरों में पिंजरे में रखकर प्रजनन केंद्र स्थापित किये गये हैं। ऐसा अनुमान है कि पतले चोंच वाले जंगली गिद्धों की आबादी केवल 1000 तक सिमट गयी है और हर वर्ष उनकी जनसंख्या में नाटकीय गिरावट हो रही है।गिद्ध संरक्षण कार्यक्रम में बांबे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी ‘बीएनएचएस’ के साथ काम करने वाली नीता शाह ने कहा कि डाइक्लोफेनाक की खुदरा बिक्री पर रोक, सुरक्षित विकल्प को बढ़ावा देने और प्रजनन के लिए और अधिक गिद्धों को पकड़कर ही इन पक्षियों को विलुप्त होने से बचाया जा सकता है।