रविवार, 3 जनवरी 2010

दुधवा के टाईगरों के रखवाले विली अब इतिहास बने

           दुधवा नेशनल पार्क के बाघों के रखवाले ही नहीं वरन यूपी के विश्व बिख्यात वन्यजीव प्रेमी पद्मश्री विली अर्जन सिंह २०१० के प्रथम दिन यानी ०१ जनवरी की रात ०९ बजे इस दुनिया से विदा लेकर स्वर्ग में अंतर्ध्यान हो गये. उनकी दुखद मौत की सूचना पर वन्यजीव प्रेमियों में शोक की लहर दौड़ गई. उनके साथ ही ईस्टमित्रों ने श्री विली के अंतिम दर्शन करके शोक सवेंदनाये ब्यक्त की . यह श्री विली के भाग्य की विडम्बना कही जाए या फिर शासन=प्रशासन की असवेद्न्सीनता कि कोई भी अधिकारी सही विली के आवास पर शाम तक झाँकने नहीं गया. इससे वन्यजीव प्रेमियों की भावनाओं को करारा झटका लगा है. 
             वैसे अगर यह कहा जाये तो विली के लिए यह बात भी बिलकुल सटीक बैठती है कि जंगल के बाघ को  बनराज कहा जाता है वह पूरी जिन्दगी अपना कुनबा बडाता है और  जब उसकी मौत होती है तो उसके करीब कोई नही होता है. यही हाल कुछ दुधवा के टाईगर यानी विली अर्जन सिंह के साथ हुआ. उनकी भी जब मौत हुई तो अंतिम घड़ी में श्री विली के पास उनका कोई अपना नही था यानी कोई सगा-सम्बन्धी. उनके करीब थे केवल उनके सेवादार, जो हमेशा उनके सुख-दुःख में साथ रहते थे. दुसरे करीबी मित्र थे उनके पास पास डब्ल्यू.डब्ल्यू. ऍफ़. के मुदित गुप्ता.हालाँकि श्री विली आजीवन कुंवारे रहे और अपना पूरा जीवन बाघों को बचाने में लगा दिया. वन्यजीवों से उन्हें बहुत लगाव था. श्री विली का  कहना था कि इस धरती पर अगर बाघ नही रहे तो मानव जीवन भी नही रहेगा दुनिया नस्ट हो जायेगी.      
           १५ अगस्त १९१७ को गोरखपुर में पैदा हुए विली अर्जन सिंह का पटियाला के राजघराने से ताल्लुक था सेना में कैप्टन की नौकरी से त्यागपत्र देने के बाद उहोंने  आजादी से कुछेक साल पहले इस तराई छेत्र को अपनी कर्मभूमि बनाया. श्री विली का कहना था कि १२ साल की उम्र में एक बाघ को गोली मारी थी. उसके बाद केवल उन बाघों को ही गोली का निशाना बनाया जो नरभक्छी हो चुके थे. एक जमाने में मशहूर शिकारी रहे विली अर्जन सिंह की ख्याति बाघों के रखवाले के रूप में देश-विदेश तक फ़ैली. वन्यजीवों को सुरछा देने के लिए दुधवा नेशनल पार्क की स्थापना में श्री विली का महत्वपूर्ण योगदान रहा. 
          इंग्लैड में एक पार्क से तत्कालीन प्रधानमन्त्री स्व. इंदिरा गांघी को  मिली सायवेरियन प्रजाति की  बाघिन तारा को पालकर अंगुली पर नचाने वाले श्री विली अंतर रास्ट्रीय स्तर पर चर्चित हुए.हलाकि नरभक्छी होने पर तारा को गोली का निशाना बनाकर मौत दी गई थी.  उन्होंने हैरिएट और जूलियट नाम के दो तेदुआं भी पाले जो बड़े होकर जंगल में भाग गये थे. इनके पास एक कुतिया भी रही जिसे वह अत्यधिक प्यार करते थे. कुतिया और तारा एक साथ कटोरी में दूध पीतीं थी. 
          वन्यजीव की रखवाली में जीवन ब्यतीत करने वाले श्री विली को १९७३ में पद्मश्री, 2006 में पद्म भूषण, 2005 में पालगेटी, २००६ में यश भारती, तथा डब्ल्यू.डब्ल्यू. ऍफ़ से गोल्ड मैडल एवं एवीएन एमसेका लाईफ टाईम एचीवमेंट अवार्ड मिला. श्री विली ने बाघों की रहस्यमय दुनिया और उनके जीवन पर आधा दर्जन किताबें भी लिखी. श्री विली अरेबियन नाईट आदि उपन्यासों के भी शौक़ीन थे. उनके पुस्तकालय विश्व के मशहूर उपन्यासकारों की  दुर्लभ पुस्तकें भी मौजूद है. 
         विली अर्जन सिंह की  मौत के साथ ही दुधवा के बाघों का हितैषी ही नही वरन यूपी से वन्यजीवों के रछकों की कतार का शिरमौर पुरोधा का अंत हो गया है. जिसकी पूर्ति अब असम्भव है. उनका जीवन सघर्षशील रहा और वे हमेशा वन्यजीवों को बचाने में लगे रहे उनके कार्यों को न वन विभाग भुला पाएगा और न ही वन्यजीवप्रेमी.श्री विली की अंतिम इच्छा के अनुरूप उनके शव को टाईगर हैवन के प्रागण में सुपुर्दे-खाक किया गया, इस मौके पर वन विभाग के अफसर, डब्ल्यू डब्ल्यू ऍफ़ के अधिकारी, तमाम वन्य  जीवप्रेमी, नाते-रिश्तेदार, सेवादार, पत्रकार, गणमान्य नागरिक तथा प्रशासनिक व् पुलिस के स्थानीय अधिकारी तो मौजूद रहे.
दुधवा के टाईगरों के रखवाले विली अब इतिहास बने  

सुपुर्दे खाक हो गए विली अर्जन सिंह

दुधवा के बाघों के  हकों का हिमायती विली अर्जन सिंह आज दुनिया से विदा हो गये  







   उ. प्रदेश के प्रमुख वन संरछक वीके पटनायक 


                                 दुधवा के पूर्व उप निदेशक  पी. पी. सिंह आदि नागरिकों ने दी अंतिम विदाई 





                         दुधवा नेशनल पार्क के प्रवेश द्वार पहुंची शवयात्रा को पार्क कर्मचारियों ने दी सलामी 


                                                                      
                                                                   अंतिम दर्शन 





                                                    
                                       सुपुर्दे खाक हो गए विली अर्जन सिंह 



                                                                  रह गई केवल यादें


                                                                  
                                                आपको हमारा सलाम !!!!