गुरुवार, 4 मार्च 2010

दुधवा के बाघों पर खतरा मंडराया

                 दुधवा के बाघों पर खतरा मंडराया
             दुधवा टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर एवं डिप्टी डायरेक्टर ने विगत दिनों अखबारों में यह बयानबाजी करके कि दुधवा और कतर्नियाघाट में बाघों का कुनुबा बढ़ा है, अपनी पीठ स्वयं थपथपाई है। उन्होंने तो यहां तक दावा कर दिया है कि दुधवा और कतर्नियाघाट के जंगल में 38 बाघ शावक देखे गये हैं। वैसे अगर देखा जाए तो यह अच्छी और उत्साहजनक खबर है। परंतु इसके दूसरे पहलू में उनकी इस बयानबाजी से बाघों के जीवन पर खतरे की तलवार भी लटक गई है।
              भारत में बाघों की दुनिया सिमट कर 1411 पर टिक गई है। इसका प्रमुख कारण रहा विश्व बाजार में बाघ के अंगों की बढ़ती मांग। इसको पूरा करने के लिये सक्रिय हुये तस्करों ने बाघ के अवैध शिकार को बढ़ावा दिया। जिससे राजस्थान का सारिस्का नेशनल पार्क बाघ विहीन हो गया तथा देश के अंय राष्ट्रीय उद्यानों के बाघों पर तस्करों एवं शिकारियों की गिद्ध दृष्टि जमी हुई है। जिससे बाघों का जीवन सकंट में है। ऐसे में दुधवा टाइगर रिजर्व के जिम्मेदार दोनों अधिकारियों का उक्त बयान शिकारियों के लिये बरदान बन कर यहां के बाघ शावकों का जीवन संकट में यूं डाल सकता है क्योंकि अब जो लोग यह बात नहीं जानते थे वह भी इस बात को जान गए हैं । इससे यहां के बाघों के जीवन पर खतरे की तलवार भी लटक गई है। इस स्थिति में साधन एवं संसाधनों की किल्लत से जूझ रहा लखीमपुर-खीरी का वन विभाग क्या शिकारियों के सुनियोजित नेटवर्क का सामना कर पाएगा? यह स्वयं में विचरणीय प्रश्न है। कतर्नियाघाट वंयजीव प्रभाग क्षेत्र में अभी पिछलें माह ही लगभग आधा दर्जन गुलदारों (तेदुआं) की अस्वाभाविक मौतें हो चुकी हंै। यह घटनाएं स्वयं में दर्शाती है कि कतर्नियाघाट क्षेत्र में गुलदारों की संख्या अधिक है। इस परिपेक्ष्य में वंयजीव विशेषज्ञों का मानना है कि गुलदारों की बढ़ोत्तरी दर्शाती है कि बाघों की संख्या कम हुई है। उनका कहना है कि एक ही प्रजाति का होने के बाद भी बाघ और गुलदार के बीच जानी दुश्मनी होती है, जिस इलाकें में बाघ होगा उसमें गुलदार नहीं रह सकता है। यही कारण है कि बाघ घने जंगल में रहता है और गुलदार जंगल के किनारे और वस्तियों के आसपास रहना पंसद करता है।
            दुधवा प्रोजेक्ट टाइगर का इतिहास देखा जाए तो उसकी असफलता इस बात से ही जगजाहिर हो जाती है कि पिछले एक दशक में यहां बाघों की संख्या 100-106 और 110 के आसपास ही घूम रही है। दुधवा में बाघों की मानिटरिेंग की कोई पुख्ता व्यवस्था नहीं है फिर बाघ शावकों की सही गिनती कहां से आ गयी? वैसे भी यहां बाघों की संख्या पर भी प्रश्नचिन्हृ लगते रहे हैं। ऐसी दशा में उपरोक्त अधिकारियों की बयानजाबी पर संदेह होना लाजमी है। (लेखक वाइल्डलाइफर/पत्रकार है ं)